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________________ ( ५६ ) रहे. बस एक दुसरेके साथ संपको बढाना इस कॉन्फरन्सका मुख्य काम और हेतु है. इस संपके बढने के साथही साथ धार्मिक और सांसारिक व्यवस्था स्वयमेव उन्नति पाती जावेगी. क्योंकि इस महामंडलमें कुल हिंदुस्थामके श्रीमान्, विद्वान्, बुद्धिमान् , गुणवान् , उत्साही धर्मात्मा संघनायक इकट्ठे हुये है उनके दृढ और उमदा बिचारोसें जो जो ठराव इस महामंडळमें जैन समुदायकी उन्नत्तिके लिये मंजूर होंगे उन सबका समयानुसार अमल होनेसें शुभफल अवश्य होगा.' ५ अपनेको इस महान् प्रयासमें श्रीजिनेश्वर भगवान्की आज्ञानुसार चल. नेमें मुख्यतः विद्वान् मुनि महाराजाका जमानेके अनुकुळ उपदेश जियादे असर कारक हो सकता है. और गृहस्थ जो अपने व्रत नियम पञ्चक्खाण और दुसरे आवश्यक कर्ममें सावधान है, ज्ञान ध्यानमें यथाशक्ति उद्यम कर रहा है, और एक वचनी, प्रामाणिक, सुशील है उनका उपदेशभी उत्तम असर कर सकता है. और अपनेकुं ध्यानमें रखना चाहिये कि हरेक कोमकी उन्नति उसके आगेवानोके निर्मळ हृदय व तदनुसार प्रशंसनीय वर्तनपे आधार रखती है. एसे उमदा विचारमें कटिबद्ध होके शासन प्रभावनाके कामकें घुमनेवाले प्रख्यात शेठजी फकीरचंद प्रेमचंद जे. पी. हमारे इस महा मंडलको कोमल बचपनकी हालतमेंही छोडकर स्वर्ग सिधारे. उनके मृत्युसें उनके वृद्ध पिताहीको शोक नहीं हुवा है, बल्कि तमाम हिंदुस्थानके जैन वर्गको उनके परलोक सिधारनेसें बडा रंज हुआ है. उनके साथही साथ मध्य प्रांत के एक गृहस्थ, कि जिनकों इस कॉन्फरन्सका बड़ा भारी शाख था और जिनोनें मध्य प्रांतमें इस कॉन्फरन्सकी तरफ बडा उत्साह दिखलाया था अगर जिंदगी बाकी रहती तो इस कॉन्फरन्सके एक स्तंभ तरीके काम देते, वह गृहस्थ शेठजी वृद्धिचंद्रजी सिवणी छपराके रहनेवाले, और पंजाब के दो प्रतिष्ठित धर्मात्मा, कॉन्फरन्सके कार्योंमें मदद देनेवाले लाला गुजरमलजी और लाला भगत नथुमलजी हुशीयारपुरवाले और श्रीगिरिनारजीके व्यवस्थापक डॉ. त्रिभुवनदास मोतीचंद शाह उनोंनेभी इसही वर्षमें परलोक सिधारकर इस कॉन्फरन्सके खेररव्हांहोकी संख्या में कमी की है. उन सब सज्जनोकी आत्माको आराम मिले यह हमारी ख्वाहिस है. ६ धार्मिक और व्यवहारिक शिक्षण-आजकल धार्मिक और व्यवहारिक शिक्षणपर बहुत चर्चा चल रही है. और इस विषय पर सबका मत एक रहा है. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005585
Book TitleTriji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Chunilal Vaidya
PublisherReception Committee
Publication Year1906
Total Pages266
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size23 MB
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