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________________ ૩૩ Jain Education International ॥ ३० ॥ एवं नवहि पहिं निष्फष्णो सिद्धचकवरमंतो ॥ सोहइ मणम्मि जेर्सि, तेसिं सया कज्जसिद्धीओ जिणसासणणिस्संद, संतिदयं लद्धिदाणसामत्थं ॥ उवसग्गहरं सुहयं वंदे सिरिसिद्धचकमहं सिरिसिद्धचकभत्ती, अनियाणा नाणपुव्विया विहिया ॥ निव्ववहाणा सुद्धा, सयलिच्छियदाणकष्पलया ॥ ३१ ॥ सिरिनवपयपसाया, भवे भवे मिलउ विहियकलाणा ॥ सव्त्रत्थ जओ विजओ, बोही निव्वाणसुक्खदया अन्महिओ चक्काओ, निवसेहरचक्कवट्टिणो एसो ॥ सिरिसिद्धचकमंतो, हरउ सया सयलविग्घाई ॥ ३२ ॥ पवरम्मि थंभतित्थे, अहुणा खंभायनामसुपसिद्धे ॥ भव्वजिणायक लिए, पत्ररायरियाइजम्मथले तवगच्छंबर दिणयर, जुगवर सिरिनेमिसूरिसीसेणं ॥ परमेणारिएणं, सिरिथंभणपासभत्तेणं [ श्री विनयपद्मसूरिकृत सुजुक्खिमि वरिसे सिरिने मिनाह जम्मदिणे ॥ सिरिरिमंतसरणं, किच्चा सव्वोवसग्गहरं सिरिसिद्धचकभत्ति, लहिऊणं नटुकम्मवाबाहा ॥ जिणसासणपसत्ता, सिद्धिसुहाई पसाहंतु ॥ समाप्ता श्रीसिद्धचक्रद्वात्रिंशिका | 11:38 11 For Personal & Private Use Only ॥ ३३ ॥ ॥ ३४ ॥ ॥ ३५ ॥ सिरिसिद्धचकभावा, रइया दार्तिसिया विसालत्था ॥ लच्छीपपढण, पढणाइपरायणा भव्वा ॥ ३६ ॥ ॥ ३७ ॥ ॥ ३८ ॥ www.jainelibrary.org.
SR No.005485
Book TitleDeshna Chintamani Part 03 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaypadmsuri
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year
Total Pages616
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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