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________________ પરિશિષ્ટ ૨ Jain Education International काव्य : ४ "होरी" २ - राग शाम कैसी खेलत होरी, अचरज खूब बनोरी, ( काफी, ताल दीपचंदी) कोई जन भेद लहोरी. शाम कैसी० (टेक) तन रंगभूमि बनी अति सुंदर, बालन बाग लगोरी, नाडी अनेक गली जहाँ शोभत, खेले तहां सांवरो री; संग वृषभानकिशोरी. शाम कैसी ० पाँच सखी मिल पाँच रंग भर, जेत बहोर बहो री, राधिका लेकर डारे शाम पर, सब तन दीन भिगो री; शाममन मोद भयो री. शाम कैसी० ३ होरी में मोद मानकर शामने, राधिकावेष धरो री, मिल सखियन संग फाग मचायो, खेलत मगन भयो री; आप सुध भूल गयो री . शाम कैसी ० खेलत खेलत जान न पायो, दीर्घ काल गयो री, बन बन फिरत मिले जब सत्गुरु, सखियन संग विछोरी; शाम ब्रह्मानंद मिलोरी. शाम कैसी० अव्य: ५ વામનાવતાર विष्णोर्नु कं: वीर्याणि प्रवोचं यः पार्थिवानि विममे रजांसि । यो अस्कभायदुत्तरं सधस्थं विचक्रमाणस्त्रेधोरुहाव: । यस्य त्री पूर्णा मधुना पदान्वक्षीयमाणा स्वधया मदंति । यउ त्रिधातु पृथिवीमु॒त द्यामेको दाधार भुवनानि विश्वा ॥ उरुक्रमस्य स हि बन्धुरित्था विष्णोः पदे परम मध्व उत्सः । (ऋग्वेदसंहिता १ - १५४ ) - For Personal & Private Use Only — ૨૯૩ ४ ब्रह्मानंद www.jainelibrary.org
SR No.005477
Book TitleAcharya Anandshankar Dhruv Darshan ane Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Charan
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages314
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size6 MB
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