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________________ Jain Education International अश्विनी चु चे चो ला ३ अश्वमुखवत् अश्वस्कंध भरणी. TED +E. नट ३ (योनिसंस्थान) भगाकार(योनि)वत् कृत्तिका आ ई ऊ ए ६ क्षुर (अस्त्र)वत् क्षुर (अस्त्र)धारा ०० ११ रोहिणी ओ वा वी वू ५ शकटाकारवत् शकटोद्धिसंस्थान २-उक्तं च-तिग तिग| पंचगसयं, दुग दुग बत्तीसग तिगं तह तिगं च । छप्पंचग तिग एक्कग, पंचग तिग छक्कगं चेव ||१॥ सत्तग दुग दुग पंचग एक्केक्कग पंच चउतिगं चेव ।। एक्कारसग चउक्कं चउक्ककं चेव तारग्गं ||२|| [ज्यो. क.] ३-उक्तं च-हयवदनभग १०क्षुर ११शकट १२मृगशिरो | १३मणि १४गृहेषु५ १६चक्राणाम् । | १७प्राकार १शयन १६पर्यङ्क २०हस्त | २"मुक्ता २२प्रवालानाम् ॥१॥ | २३तोरण २४मणि २५कुण्डल | सिंहविक्रम२६ २७स्वपन २ गजविलासानाम् । 'श्रृङ्गाटक त्रिविक्रम | मृदङ्ग वृत्त 'द्वियमलानाम् ॥२॥ | "पर्यङ्क मुरजसदृशानि भानि कथितानि चाश्विनादीनि ॥ १२ मृगशीर्ष वे वो का की | ३ मृगमस्तकवत् मृगशिर 0-0-0 For Personal & Private Use Only २८ नक्षत्रोनी आकृति वगेरे विषयो सम्बन्धी यन्त्र रुधिरबिन्दु कु घ ङ छ १ के को हा ही ५ । मण्याकारवत् गृहाकारवत् पुनर्वसु तुला १५ पुष्य हे हो डा ३ शराकारवत् वर्धमानक ०० १६ आश्लेषा डी डू डे डो ६ चक्रवत् पताका १७ मघा मा मी मू मे ७ प्राकाराकारवत् शालवृक्ष १६७ www.jainelibrary.org
SR No.005475
Book TitleSangrahaniratnam Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year2003
Total Pages1042
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size34 MB
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