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________________ तां शकतिकुमरनुं राज॥३॥नगर देश तुमने नले, करजो सहुनी सार ॥ वीरे वचनज मानीयु, चाट्या शुन दिन वार ॥४॥ परदेशी साथे लीयो, देश बहुला दाम ॥ दीधारी देवल चढे, सीके सघलां काम ॥५॥त्रणे तिहांथी नीसस्या, मनकेसरी ने राय॥ देश नगर जोतां थका, आघा मारग जाय ॥ ६ ॥ ॥ ढाल चोथी॥ राग केदारो ॥ जोषीयमो जाणे ज्योतिष सार ॥ ए देशी॥ ॥ उजम वसती जोवतां रे, लंघे बहुला घाट॥ राय मंत्री जाणे नहीं रे, परदेशी कहे वाट ॥राजनजी जोगी केरे रे वेश, सहुको करे आदेश ॥ रा०॥ ए आंकणी ॥१॥ किहां संन्यासी किदांब्राह्मणुं रे, करता रूप अनेक ॥ त्रिहुं मासे पहुता तिहां रे, बिडं मन घणो अविवेक ॥ रा॥२॥नयणे नगरज निरखीयुं रे, इंजपुरी अवतार ॥ पवन त्रीश तिहां वहे रे, नव जोयण विस्तार ॥ राम्॥३॥ कनकन्त्रम राजा तिहां रे, पाले सुखमें राज ॥ वैरी जन श्रावी नमे रे, सारे उत्तम काज ॥ रा० ॥४॥ वन वाडी सहु निरखतां रे, नरवाहन नरेश ॥ मनकेसरीमुहते करी रे, नगरे कस्यो प्रवेश ॥ रा० ॥ ५॥ राजा ने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005393
Book TitleHansraj Vacchraj no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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