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________________ (१४) जुवने विख्यात ॥ ४॥ तुं शीकोतर सरसती, सारे सघलां काज ॥ कोइल पर्वत जागती, देवी तुं हिंगलाज ॥५॥ जालंधर ज्वालामुखी, श्राबुतुं अंबान ॥ उकोणी हरसिक नमुं, राणा जाणे राज॥६॥हुंथपराधी ताहरो, स्तुति कीधी कर जोम ॥ खामिकाज साहस कीयो, पूरो मनना कोम ॥७॥ ॥ ढाल सातमी ॥ राग आशासिंधु ॥ धर्म हैये धरो ॥ अथवा ॥ वंध्याचलनो हाथीयो रे ॥ ए देशी॥ ॥णे वचने तूठी सुरी रे, मागो वर अनिराम॥ जे मागीश ते श्रापशुं रे, सारीश तुजनो कामो रे॥ पुण्य सदा फले, पुण्ये वंबित होय रे ॥ पु० ॥१॥ मुहतो कर जोमी कहे रे, आपो करीय पसाय ॥ विविध चित्राम करुं जला रे, ए वर द्यो मुजमायो रे॥ पु० ॥२॥ शक्ति एक दीधी तिहां रे, जा वत्स करशुं काम ॥ देवी चरण नमी करी रे, आव्यो श्रापण गमो रे ॥ पु० ॥३॥ मनकेसरीमुहतो नमे रे, नरवाहनना पाय॥ आज पठी नवि मारशे रे, देवी तणे सुपसायो रे ॥ पु०॥४॥ पूर्व वात मांगी कही रे, हरख्यो मनमें नरेश ॥ चिंता हवे स्वामी टली रे, वंडित काज करेशो रे ॥ पुण्॥ ५ ॥ चितारो मंत्री Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005393
Book TitleHansraj Vacchraj no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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