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________________ (७) न्याय नाव राजा निपुण, शूर सुनट सत्यवंत ॥ मन वयणे पोषे प्रजा, वन तरु जेम वसंत ॥२॥ साहसीक नूपति सबल, धरे सदा दृढ धर्म ॥ वीर विचदण अति चतुर, जाणे सगला मर्म॥६॥ ॥ ढाल त्रीजी॥राग ललित रामग्री॥सर __णीयानी देशी ॥ चोपाश्मां ॥ ॥ विलसे राजा विविध प्रकार,सत्तावीश अंते तर नारिहय गय रथ पायक परिवार, शूरवीर नी अंत न पार ॥१॥ बीजा मणि माणिक नंमार, रयण जेटला समुद्र मजार ॥ महोटा नृप तस नामे शीश, जिसो जाणे अवनीश ॥२॥ सति सुतारा सुंदर नार, पटराणीशुं प्रेम अ पार ॥ मतिसागर मंत्री मतिवंत, सामि धर्म साचो सत्यवंत ॥३॥ सकल कला गुण मणि का मिनी, प्राण प्रिय पीयु मनगामिनी ॥ पूर्णचंद्र वदनी निकलंक, लघींत केसरी सम कटि लंक ॥ ॥४॥कीकी जमर कमलदल जिसी, विकसित लो यण सोहे तिसी ॥ सूक्ष्म रेखा काजल सारी, म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005392
Book TitleHarichand Rajano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1897
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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