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________________ (६०) किजे मुरख पुत्र, विद्या विण न रहे घर सूत्र ॥ ३० ॥ विद्या रुप कश्पां कहि, विद्या धन बार्नु डे सही; चोर चरम न खेई शके, नवि सीदाये विद्या थके ॥३१॥ गाम नगर पामे परदेश, विद्या माने नगर नरेश; विद्याथी वाधे जसवाय, विद्या सवि संयोग उपाय ॥ ३१ ॥ नृपथी मोटो विद्यावंत, गकुर गमजि मान लहंत; विद्यावंत जिहां जिहां जाय, तिहां तिहां मान घणेरां थाय ॥ ३३ ॥ जेहने दूजे विद्या गाय, तेहने नही अहिगुमाय; जां जीवे तां दूळे सही, मुां पनि विसूके सही ॥३४॥ पांच वरस बेटो लालीयें, दस निशाले संसालीये; वरस सोलमें खंधे रह्यो, मोटो मित्र समायो कह्यो ॥ ३५ ॥ करो सजाई घर थापणे, जिम बेटो निशाले लणे; मदूरत पूज्युं पंमित पास, वडे महोछव मन उदास ॥३६ ॥ तेडी महाजन दी, मान, थारोगावी थाप्यां पान; जस्यो खूप खुणालो खरो, वीरे कीयो काको वरो ॥३॥ तुरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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