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________________ ( १५ए ) पोढे निघा अलप न घणी ॥ १४५ ॥ आवे परवे पोसह धरे, त्रण काल जिन वंदण करे; बहु सावध योग परिहार, सहगुक सरिसो अर्थ विचार ॥ १४६ ॥ जुर्म श्म श्रावकनो आचार, पाले पामे मोद दूधार; पनि मोह तणे जंजाल, नर जव गमे अमूलिक आल ॥ १७ ॥ केनुं राज केना गज तुगे, गयो रावण जे लंकेशरी; गया राम राजा हरिचंद, मुंज नोज गणपति गोविंद ॥ १४ ॥ गया देव चोवीसे आज, गया नल विक्रम मेली राज; गयो राम दशरथ जे तात, गयो नरत जे जग विख्यात ॥ १४ ॥ महारी महारी म करीश धरा, नहि आपणा देह पाधरा; नवे नंद ने नव इंगरी, ते कहो कुण साथे संचरी ॥ १५० ॥ गाम देशनो करे संहार, आगल नरवू पेट नंडार; एक जीव वधतां जे पाप, जाणिश परनव देतो जाप ॥ १५१॥ करे राज मद आणे हीये, करतां पाप आप नवि बिहे; कुण मोटा न्हाना यातमा, परजव राय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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