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________________ ( १४१ ) लगाडे दोष || २ || बेसे पूरव उत्तर जणी, पूजा करवा घरनो धणी; दक्षिण दिसी संतान न सरे, पश्चिम चोथो नवि उद्धरे ॥ ६० ॥ नैऋतकु कुलक्षय जाए, अगनिकुण बोली धन हाण; वायकुण संतान न फले, ईशाने अवश्य तचले ॥ ६१ ॥ पूजन केसर चंदन पखे, देवकाये खरडो नवि रखे: नरसी आयो कसकसो, तेणे सुकड लगी घसो ॥ ६२ ॥ पहिरो मुकट कनक कंकणां, नहीतर करज्यो सुकड तणां; पूजेवोनिनो नाथ, आघो म धरे खाडो हाथ || ६३ || जो घर रिद्धिन पुढचे घणी, कर मुद्रा न हुए सोवन तणी; आणी पाणी निर्मल चंग, पूरां देव पवाले अंग ॥६४॥ वालाकुंची ये खूणा घणे, लदे घणा प्रंग लूदणे; पूज्या विण करथी ममं मेल, के चंदन के चंपक वेल ॥ ६५ ॥ पाय जानु कर दोदोपवा, मस्तक पूजा बोली सवा; जाल कंठ हृदय स्थल पेट, पूजा पंडी जिनवर नेट ॥ ६६ ॥ नवे तिलक नर त्यां सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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