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________________ (१४५) ॥४४॥ सामायक पडिकमणुं करे, दिन उगते सिर विहरे; अदत फल दीगो जिन नाण, जेटि सहगुरू सुणे वखाण ॥४५॥ दे वंदणा विनय. ना जाण, करे श्रीगुरू मुख पचखाण; पबी थाजिवीका उपाय, लहु आरन तणा व्यवसाय ॥ ४६ ॥ जोजन वेला हुए जेटले, कुसम काज नर को तेटले; पहिरी धोती ज्योती निर्मली, करी हाथ वरचुं कमली ॥ ४ ॥ अनुहाणे चरणे चा. त्यो जाय, वेगे पदोतो वाडी मांड; माली सहजे चुंटे फूल, धरे गम ले थाली मूल ॥ ४॥ आएयां फूल विधि जे घणां, पय पुजण परमेसर तणा; न रहे साथ अनेरे काम, थाणी मेले उत्तम गम ॥४॥ घर नायक तव आव्यो घरे, पश्चिम साहमुं पावन करे; पहेयाँ वस्त्र परहां ते मेल, मरदन अंग सुगंधी तेल ॥ ५० ॥ गली नीर साचवणी करी, उन्हा जलनुं नाजन जरी; जोश् चोखे थानक ढालो, पोढो पाट ते परनाली ॥५१॥ वे पुरवसामो थई, अंग पखाले Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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