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________________ ( 2 ) नविय तुमें । सुजो सरस संबंध ॥ खालस अंगें परहरी । मूकी घरना बंध ॥ ए ॥ जयतां सांजलतां थकां । करतां बहु वखाण ॥ दिन दिन दोलत संपजे । जयलछी कल्याण ॥ १० ॥ कोण नयरी कोण देशमां । कीधां उत्तम काम || सावधान यह सांगलो | जेम पामो सुखधाम ॥ ११ ॥ ॥ ढाल पहेली | राग काफी ॥ अलबेलानी देशी ॥ ॥ जंबुद्धीपमां जाणी यें रे लाल । दक्षिण जरत - जिराम ॥ सुखकारी रे ॥ तिहां मालव देश वखाणी यें रे लाल । डुबलानो आधार ॥ सुखकारी रे ॥ १ ॥ गिरुवो मोहन मालवो रे लाल । सवि देशनो राजान ॥ सु०॥ नदीय नवा जिहां घणां रे लाल । उपजे बहुलां धान ॥ ॥ ० ॥ २ ॥ गिरुवो० ॥ जिहां जिनवरनां सुंदरु रे लाल । मोहोटां सोहे प्रासाद ॥ सु०॥ कलश ध्वजा करी शोजता रे लाल । उंचा गगनशुं मांडे वाद ॥ ॥ सु || ३ || गिरु० ॥ धर्मशाला घणी देशमां रे लाल । सुख पामे पगार ॥ सु० ॥ पुण्यवंत श्रावक जिहां घणा रे लाल | सुधा समकित धार ॥ सुख० ॥ ५ ॥ ॥ गि० ॥ जार ढार तरुवर तणी रे लाल । फूली रही वनराय ॥ सु०॥ नित्य वरसालो जाणीयें रे लाल । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005384
Book TitleMangalkalash Kumar Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1909
Total Pages94
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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