SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३४) आवे, जाणो ते बहुल संसारी ॥३॥ सु०॥ श्रीपासबंद सूरीसर पाटे, समरचंद गुणधारी ॥ तेने पाटे श्री राजचंद सूरि, सुरती सोहे सारी ॥४॥ सु०॥ शिष्य शिरोमणि तेहना कहिये, पचम काल आहारी ॥ देव चंद वणारसी दीपे, प्रागवंश शिगगारी ॥५॥ सु०॥ जंबुपछा नणशे गुणशे, सुणशे जे नर नारी ॥ मानव नव ते सफल करीने, थाशे सुर अवतारी ॥६॥ सु०॥ संवत सत्तर अद्यावीशे, पाटण नगर मोजारी ॥ जंबुपृष्ठा रची मन रंगे, वीरजी मुनि सुखकारी ॥७॥ सुण ॥ ॥इति श्री वीरजी मुनि कृत जंबुपृचा संपूर्णा ।। ॥अथ॥ ॥ श्री गौतमरवानी चोपाई प्रारंजः॥ . .. ॥दोहा॥ ... ॥ सकल मनोरथ पूरवे, चोवीसमो जिण चंद ॥ सोवनवान सोहे सदा, पंखे परमानंद ॥१॥ समवसर ए देवे मली, रचीयुं उत्तम गम ।। पद्यासन पूरी करी, बेठा त्रिजुवन खाम ॥२॥ बेग मुनिवर केवली, गण हर कर 'अगियार ॥ सुर नर किन्नर मानवी, बेठी पा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005369
Book TitleKarmvipak athwa Jambu Prucchano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy