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________________ (३० ) क्षमा सजा, शांतिमेधाप्रवर्डिनी॥॥ क्रिया सत्सं गतिः सिद्धिः, सेवा व्रतगति तिः ॥ एता स्त्रयोदशा पत्या, धर्मस्य गृहचारिणः ॥३॥ ढाल ॥ ढाल सोहे अग्यारमी, सांजलतां सुखदाय रे ।। कारण पापतणां तजे, वीर सुखी ते थाय रे । प्रश्न ॥१५॥ ॥दोहा।। ॥ ए फल नांख्यां पापनां, हवे कहु पुण्य विपाक । सुकृत संच्यां सुख होय, आंबे न थाये थाक ॥१॥ जीव लहे नव मनुष्यनो, किणे पुण्ये करी पूज्य । सो हम बोले शुन्न परे, जंबु एम तुं बूज ॥२॥ सरस चित्त सुकुमाल पj, नहिं मन क्रोध लगार ॥ जीव तणी जयणा करे, न्याये वणिज व्यापार ॥३॥ सा त खेत्र धन वावरे, पूजे जिनवर देव ॥ साधुतणी सेवा करे, खहे नरनव ततखेव ॥४॥ नारी मरी नर नो पजे, सुकृत कहिये तास ॥ सत्य शील संतोष दृढ, विनय पुरुष विलास ॥५॥.. - ॥ ढाल बारमी । । दीग देव अनेक, हांजी दीग देव अनेक,.. • नको मन क्से रे॥न को॥ए.देशी॥ ख खहे सुख सार । हांजी० ॥ स्खला अनु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005369
Book TitleKarmvipak athwa Jambu Prucchano Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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