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________________ वामा एकसाने थाठ तारनी चार दीवटो करवी, तथा तेमां संपूर्ण घी जर अने मांहे रुपानाणुं मुक. तथा एक चोथो पुरुष एक थालमां अखंग चोखाथी पारखेला अष्टमंगलने लश्ने बिंब सन्मुख उनो रहे, ते अष्टमंगलने वास पुष्प विगेरेथी पूजवां. पड़ी एक पांचमा पुरुषे एक थालमां अंगवुणा लश्ने सन्मुख उजा रहे, ते अंगबुणांउपर केसरनो नंदावर्त साथी करवो. पठी बे सौजाग्यवंती, तथा पुत्रोवाली स्त्री सोल शणगार सजीने बिंबने जमणे तथा माबे परखे बे वरघमा (नानाघमुया) मस्तकें लश्ने उन्ने. ते घमामां चोखा पाली एक, तथा सात सोपारी नाखवी. तथा ते उपर श्रीफल एकेक मुकवू; अने ते घमाउँपर लीडं अथवा कसुंबी कोरूं वस्त्र ढांक, अने तेने कंठे गेवासूत्र तथा पुष्पनी माला नांखवी. पठी श्री संघने तांबूल, श्रीफल, मीगर, प्रेमा प्रमुखनी यथाशक्ति प्रनावना आपवी. पली चतुर्विध संघने अगामी करीने, तथा पंचशब्दनां वाजित्रो वगमावीने, तथा पाछळ सुहागण स्त्रि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005366
Book TitleJal Yatradi Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages106
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual, & Vidhi
File Size4 MB
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