SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जशविलास ॥ पद पांचमुं॥ ॥ राग उपर प्रमाणे ॥ चेतन जो तुं ज्ञान अन्यासी ॥ श्रापहि बांधे आपहि बोडे, निजमति शक्ति बिकासी ॥ चेतन ॥१॥ टेक ॥ जो तुं आप खनावें खेले, श्रासा बोरी उदासी॥सुरनर किन्नर नायक संपति, तो तुज घरकी दासी॥ चेतन॥॥ मोह चोर जन गुन धन लूसे, देत श्रास गल फांसी। श्रासा बगेर उदास रहेजो, सो उत्तम संन्यासी ॥ चेतन ॥ ३ ॥ जोग लश पर श्रास धरतहे, याही जगमें हांसी ॥ तुं जाने में गुनकुं संचुं, गुनतो जावे नासी ॥चेतन॥४॥ पुजलकी तुं श्रास धरतहे,सो तो सबहिं बिनासी ॥ तुं तो निन्नरूप हे जनतें, चिदानंद अविनासी॥ चेतन ॥५॥ धन खरचे नर बहुत गुमाने, करवत लेवे कासी ॥ तोजी दुःखको अंतन श्रावे, जो श्रासा नहिंघासी ॥चेतन॥६॥सुखजल विषम विषय मृगतृष्णा, होत मूढमति प्यासी॥ वित्रम नूमि नइ पर श्रासी, तुं तो सहज विलासी ॥चेतन॥ ७॥ याको पिता मोह छुःख जाता, होत विषय रति मासी ॥नव सुत नरता अविरति प्रानी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy