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________________ १४० संमय तरंग न खेलो होरी रे ॥१०॥ टेक ॥ तुम न्हानी वह सखि संयोगें, न मतवाली दोरीरे ॥१०॥ कुटिला साथे तुमें पण पहोता, मदनबागां खेली होरी रे॥ ॥ १॥ अविरतनां पकवान जिहां तुम, हरखे जोजन जोरीरे ॥ १०॥ मिथ्या नाव गुलाल उमाश्, योगा कुमकुम फोरी रे ॥ ॥ २॥ इंडिय विषय जिहां रंग पिचकारी, मोहराजकी जोरी रे ॥ १० ॥ चार कथायें तुं मतवालो, रंग मचायो होरी रे ॥ ॥३॥ ऐसी होरी खेली तोपण, तृपत न नश्ते गोरी रे ॥ १० ॥ ग्यारमी नूमसे तुमने नाखी, लेग खेलन होरी रे ॥१०॥ ॥४॥ अबतो पिया मन मोहे समजो, नारी वचन चित्त जोरी रे ॥ १० ॥ जिम चारित्र युत ज्ञानानंदें, नवनिधि पामे दोरी रे ॥ १० ॥५॥ इति ॥ ॥पद बारमुं॥ • ॥राग होरी॥होरी खेले कान हिया॥ मेरो अब केसे निकसन होय दश्यां ॥ एचाल ॥ होरी खेले वालमिया, मेरो अब केसें जावनो होय दश्यां ॥ हो ॥ टेक ॥ पंच महाव्रत वाघा पहेरी, शील वि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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