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________________ १३०, झान विलास नाइ, निजघट अंतर जावो ॥ सा ॥ टेक ॥ मेरा तेरा कहा करतहे, नहिं कबु तेरा लावो ॥ सा ॥ जग जन किरिया कहा दिखलावे, कहा जग जन समजावो ॥ सा० ॥१॥ निज निजमत पख हठता वारो, अंतर नाव विचारो ॥ सा ॥ हालाहल अज्ञान निवारो, झान सुधारस धारो ॥ सा ॥२॥ तत्व विचारें प्रेम लगावो, निजगुण विमल निपावो॥ सा ॥ नवनिधि चारित प्रेमें श्रादर, झानानंद रमावो ॥ सा० ॥ ॥पद इकोतेरमुं॥ ॥ राग जंगलो। तुम सखि निरखोरे बाइ, सोतमी लेग श्रम वालमवा ॥ तु०॥ टेक ॥ श्रागें श्रागें पिया चलतहे, पावें सोतमी बाय ॥ दासी पण तेहनें साथें, कुटिला चित्त लोना॥तु ॥१॥ श्रमने लक्षण एहवो दीसे, वालम गये नरमाश् ॥ मोह नूपतिके जालें श्रटक्यो, अब नहिं निकले बार ॥तु॥२॥ क्रोधादिक तेदने रखवाला, कोट विषय कुःखदाय ॥ तेहने चनदिसि सात बिसनहे, अहोनिश लंपट सांई ॥ तु० ॥३॥ दासी युत कु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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