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________________ जशविलास नालगेन तातें, जस कहे तुंवडलागामेरे ॥५॥ति ॥पद दशमुं॥ ॥ राग गोडसारंग तथा पूर्वी ॥ पसारी कर लीजे,श्कुरस नगवान ॥ चढत सिखा श्रेयांस कुमरकी, मानु निरमल ध्यान ॥ पसारी० ॥१॥ टेक ॥ में पुरुषोतम करकी गंगा, तुं तो चरन निदान ॥ श्त गंगा अंबर तर जनकुं, मानुं चली असमान ॥ ॥ पसारी० ॥२॥ किधो विधु बिंब सुधातूं चाहत, श्राप मधुरता मान ॥ किधो दायककी पुण्य परंपर, दाखत सरगविमान ॥ पसारी० ॥३॥ प्रजुकर - हुरस देखी करत हे, ऐसी उपमा जान ॥ जश कहे चित वित पात्र मिलावें, युं नविकुं जिन ना. न॥ पसारी॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ पद अगीयार, ।। ॥ राग अडाणो ॥ शीतल जिन मोहिं प्यारा टेक ॥ नुवन विरोचन पंकज लोचन, जिनके जिन हमारां॥ शीतल ॥१॥ ज्योतिशुं ज्योत मिलत जब ध्यावें, होवत नहि तब न्यारा ॥ बांधी मूठी खुले जव माया, मिटे महा भ्रम नारा ॥ शीतल ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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