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________________ १७. अर्धमागधी आगम-ग्रंथों के संपादन में हस्तप्रतो में से पाठों की पसंदगी का प्रश्न . के. आर. चन्द्र जेनों का प्राचीनतम धर्मशास्त्र आगम साहित्य है और वह भगवान् महावीर के उपदेशों का संग्रह है । इसकी भाषा एक प्राकृत भाषा है, जिसका नाम अर्धमागधी है जिसमें भगवान् महावीर ने उपदेश दिये थे । यह आगम साहित्य गुरु-शिष्य की मौखिक परंपरा से शताब्दियों तक चलता रहा और पाँचवीं शताब्दी के अंत में या छठी शताब्दी के प्रारंभ में वलभी में इसे लिपिबद्ध किया गया। परंतु उसकी जो मूल भाषा थी वह वैसी की वैसी नहीं रही । भगवान् बुद्ध भी महावीर के समकालीन ही थे, लेकिन उनके पालि त्रिपिटक की भाषा और अर्धमागधी में समानता नहीं है । संस्कृत भाषा तो पाणिनी के समय से आज तक उसी रूप में प्राप्त है । लेकिन प्राकृत भाषा अपना स्वरूप स्थल और कालान्तर के साथ साथ बदलती गयी अर्थात् लोकभाषा, जनभाषा बदलती गई और उसका प्रभाव अर्धमागधी प्राकृत पर भी पड़ा । जैनधर्म मगध से (पूर्व भारत से) मथुरा और वहाँ से वलभी(गुजरात) पश्चिममें पहुँचा और इसी कारण मौखिक रूप में चले आ रहे आगम साहित्य पर शौरसेनी (मथुरा) और महाराष्ट्री (वलभी) का प्रभाव पड़ता रहा । आज जो आगम साहित्य उपलब्ध है वह मूल अर्धमागधी के परिशुद्ध रूप में नहीं मिल रहा है, उस पर महाराष्ट्री प्राकृत का गहरा प्रभाव पाया जाता है । उच्चारण-भेद और श्रुति-भेद से तो भाषा बदलती ही गई ओर साथ ही साथ अर्धमागधी का कोई भी व्याकरण ग्रंथ न होने के कारण परवर्ती काल में प्राकृत भाषा के जो व्याकरण लिखे गये उनका प्रभाव भी संपादकों पर पड़ा और यह भी कहा जा सकता है कि अर्धमागधी के विषय में वे अब तक भी गुमराह (misguide) होते रहे हैं । उदाहरण के रूप में शुब्रिग महोदय का आचारांग के प्रथम श्रुत-स्कंध का जो संस्करण उपलब्ध है उसमें उन्होंने महाराष्ट्री प्राकृत व्याकरण का आधार लेकर उसे संपादित किया है और अन्य जो संस्करण उपलब्ध हैं उनमें भी मौलिक अर्धमागधी के स्वरूप का ध्यान कम रखा गया है। -... जैन परंपरा में संस्कृत शास्त्रों की तरह भाषा पर भार नहीं था वहाँ तो सिर्फ उपदेशों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005251
Book TitleHastprat Vidya ane Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Vora
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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