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________________ ૧૧૪ હસ્તપ્રતવિદ્યા અને આગ સાહિત્ય: સંશોધન અને સંપાદન भारतीय जैन श्रमण संस्कृति अने लेखनकला नामक अपने विस्तृत लेख में सम्पादनकला - सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण जानकारियां प्रस्तुत की हैं ।" उसमें उन्होंने बताया है कि प्राचीन पांडुलिपियां कैसे लिखी जाती थीं, उनके लेखक कौन होते थे, लेखन सामग्री क्या होती थी, लिपि का स्वरूप कैसा होता था तथा जैन पांडुलिपियों की लिपि की खास विशेषताएं क्या थीं, इत्यादि। इन जैन ग्रन्थ-भण्डारों की पांडुलिपियों से पता चलता है कि ग्रन्थ लिखने के लिए अधिकतर ताडपत्र, वस्त्र एवं कागज का प्रयोग किया जाता था । भोजपत्र में लिखा हुआ कोइ भी जैन ग्रन्थ अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। सबसे पहले ताडपत्र में ग्रन्थ लिखे गये हैं । पाटन, जैसलमेर, मूडविद्रि आदि के ग्रन्थ-भण्डारों में ताड-पत्रीय पांडुलिपियां प्रचुर मात्रा में सुरक्षित हैं। विद्वानों का मत है सबसे पुरानी ताडपत्रीय पांडुलिपि जैसलमेर ग्रन्थ- भण्डार से प्राप्त हुई है। वह है, १०६० में लिखी गयी ओपनियुक्ति की प्रति । पाटन भण्डार से सबसे अधिक लम्बी ताड-पत्रीय प्रति मिली है 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' की, जो ३७ इंच लम्बी है । वस्त्र पर यद्यपि अधिक ग्रन्थ नहीं लिखे गये, किन्तु फिर भी जैन लेखकों ने वस्त्रों पर कई सुन्दर ग्रन्थ लिखे हैं । पाटन के शास्त्र-भण्डार में सबसे प्राचीन १३७१ ई. का ६२ पन्नों का वस्त्र पर लिखा एक ग्रन्थ मिला हैं । कलात्मक चित्रों के लिए वस्त्रों का पर्याप्त उपयोग हुआ है। कई प्रकार की स्याही लेखन में प्रयुक्त होती थी। स्याही की निर्माण-प्रक्रिया का वर्णन भी जैन पांडुलिपियों में उपलब्ध है ।' देशकाल की भिन्नता के कारण जैन पांडुलिपियों की लिपि में भी कइ भेद हो गये हैं। यतियों की लिपि, खरतरगच्छीय लिपि, मारवाडी, लहियों (लेखकों) की लिपि, गुजराती लहियों की लिपि आदि में पर्याप्त अन्तर है । ग्रन्थ-सम्पादन में इन लिपियों की भेदरेखा की जानकारी आवश्यक है तभी शुद्ध पाठ-निर्धारण किया जा सकता है । यपि जैन लिपि की कई विशेषताएं हैं, किन्तु निम्न प्रमुख विशेषताओं का यहाँ उल्लेख करना उपयोगी होगा : १. पडीमात्रा: प्राचीन समय में अक्षरों के साथ मात्राओं को लिखने का प्रचलन था। जैन ग्रन्थभण्डारों में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाओंकी जो पांडुलिपियां मिलि है, उनमें प्राचीन पांडुलिपियों में पडीमात्रा का प्रायः प्रयोग हुआ है । पहले लिखने की सामग्री बहुत सूक्ष्म होती थी। ताडपत्र अथवा कागज का आकार छोटा होता था । अतः अक्षरों के उपर मात्राएं कर कम लगायी जाती थीं । पृष्ठमात्रा में काम चलाया जाता था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005251
Book TitleHastprat Vidya ane Agam Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Vora
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages218
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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