SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (८५) तेथी ते पाछळना काळमां प्रथम स्कंधमां थलो एक उमेरो छे. प्रथम स्कंन्धनो उद्देश स्पष्ट रीते जुवानसाधुओने मार्ग बताववानो छे'. तेनी रचनाशैली पण आज प्रयोजनने उपकारक थाय तेवी राखवामां आवी छे. तेमां घणा छंदोनो पण उपयोग करवामां आव्यो छे, जेयी तेमां कवित्वनो पण समावेश यएलो छे एम मानवं जोईए. आमांथी केटलीक गाथाओनुं रूप कृत्रिम लागे छे अने ते उपरथी ए ग्रन्थ एकज कर्त्तानो रचेलो होय तेम आपणे मानी शकीए छीए. बीजो स्कंध प्रथम स्कंधमां चर्चेला विषयो उपर लखेला निबंधोनो एक समूह होय एम जणाय छे. उत्तराध्ययन अने सूत्रकृतांग बन्ने सूत्रोनो उद्देश तथा तेमां चर्चाला केटलाक विषयो परस्पर समान छे, परन्तु सूत्रकृतांगना मूळभाग करतां उत्तराध्ययन वधारे लांबु छे तेमज ते सूत्रनी योजना पण वधारे कुशळतापूर्वक करवामां आवी छे. तेनो मुख्य आशय नवीन साधुने तेनी मुख्य फरजोनो बोध आपवानो तथा विधि अने उदाहरणो द्वारा यतिजीवननी प्रशंसा करवानो, तेना दीक्षाकाळ दरम्यान आवता विघ्नो सामे चेतवणी आपवानो १ पुराणी परंपरा अनुसार दीक्षा लीधा पछी चार वर्ष वीत्या बाद सूत्रकृतांगनुं अध्ययन कराववामां आवतुं हतं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy