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________________ (७७) मनुष्योने घणी शदीओ सुधी धीरजथी मानसिक परिश्रम उठावो पड्यो हशे; तेमन तत्त्वज्ञानविषयक सतत चर्चाओ चलाववी पड़ी हशे. आथी वैशेषिकदर्शननी आदि अने अन्तिम स्थापनानी वञ्चना काळमां जो वैशेषिक विचारो लई लेवानो खोटो या खरो आरोप जैनो उपर मुंकवामां आवे तो ते कदाच तेम संभवि शके. खलं. आ स्थळे बीनी एक बाबतनो उल्लेख करवो अस्थाने नहीं गणाय, अने ते ए छे के जे मुद्दाओ हुँ अत्रे चर्चवा इच्छु छु ते मुद्दाओने लईने डॉ० भाण्डारकरनो एवो मत थएलो छे के — जैनोना विचारो ते एक बाजु सांख्य अने वेदान्तदर्शन अने बीजी बाज वैशेषिकदर्शन एम बे पक्षनी वच्चेना समन्वयना आकारना छे. ' परन्तु प्रस्तुत चर्चाने माटे तो ते बन्ने प्रकारना विचारो सरखा छे:-एटले के साक्षात् लेवू अगर वे प्रकारना विरुद्ध विचारोनुं तडजोड करवू ए एकन छे. उपरोक्त मुद्दाओं नीचे प्रमाणे छे: (१) जैनदर्शन अने वैशेषिकदर्शन ए बन्ने क्रियावादी छे. अर्थात् ते बनेनुं मानवं छे के आत्मा उपर कर्म, कषायो तथा वासनादिनी साक्षात् असर थाय छे. ( २ ) बन्ने दर्शनो असल्कार्यना सिद्धान्तने माने छे. एटले के तेमना मते कार्य ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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