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________________ (७३) चिन्हो देखावां जोईए. आई एक चिन्ह ए धर्ममा खास मळी आवे छे, अने ते तेनो, सघळी वस्तु चैतन्ययुक्त छे, एम बतावतो सचेतनवाद छे. ते वाद जणावे छे के मात्र वनस्पतिमांग नहीं परन्तु पृथ्वी, पाणी, अग्नि, अने वायुना कणोमां पण आत्मतत्त्व रहेढुं छे. मानवजातिशास्त्र ( Ethnology ) आपमने एम शीखवे छे के जंगलीलोकोनी तत्त्वज्ञानविषयक संपळी मान्यताओ सचेतनवादमूळक होय छे. आ सचेतनवाद : जेम जेम जनसंस्कृति वधती जाय छे, तेम तेम शुद्ध मनुष्यत्त्व रूपमांज मात्र परिणत थतो जाय छे. आथी करीने जो जैनधर्मर्नु नीतिशास्त्र मोटे भागे आ प्राचीन सचेतनवाद-मूलक होय तो जैनधर्मनी पहेल कहेली उत्पत्तिना समये ते सचेतनवादनो सिद्धान्त हिन्दुस्थाननी प्रजाना मोटा भागोमां विस्तृतरूपे विद्यमान होवो जोईए. आ परिस्थिति अति प्राचीन समयनी होई शके के जे वखते हिन्दुस्तानना मनुष्योना मन उपर उंचा प्रकारनी धार्मिक मान्यताओए अने पूजानी पद्धतिओए असर करी नहोती. जनधर्मनी प्राचीनतानुं बीजु चिन्ह ते तेनी वेदान्त अने सांख्य जेवां वे सौथी प्राचीन ब्राह्मणदर्शनोनी साये रहेली सिद्धान्तविषयक समानता छे. ते प्राचीनकालमा तत्त्वज्ञानना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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