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________________ पण उपयोग कयों छे. चमत्कारी अने लगभग असत्याभासरूप छ लेश्यानो नैनसिद्धान्त,-जेने पहेलीन वखत दृष्टिगोचर कर्यानुं मान प्रो० ल्यूमनने घटे छे.-गोसाले करेला सघळी मनुष्यजातिमाटेना छ वर्गोना विभाग साथे संपूर्ण रीते मळतो आवे छे. परन्तु आ नाबतना संबंधमां मारुं एवं मानवू छे के जैनोए मूळ आ विचार आजीविको पासेथी लीधो हतो, अने पाछळ्थी पोताना बीजा बधा सिद्धान्तोनी साथे ते संगत बने तेवी रीते तेमां फेरफार को हतो. आचारविषयक सघळा नियमोना संबंधमां जेटला प्रमाणो उपलब्ध थाय छे ते उपरथी लगभग सिद्ध थाय छे के महावीरे अधिक कठोर नियमो गोसालाना लीधा हता. कारण के उत्तराध्ययन २३, १३ (पृ. १२१) मां जणाव्या प्रमाणे पार्श्वना धर्ममा निम्रन्थोने नीचे अने उपरना भागमा एकैक वस्त्र पेहरवानी छूट हती, परन्तु वर्द्धमानना धर्ममां कपडानो स्पष्ट निषेध करवामां आव्यो हतो. नग्नसाधु माटे जैनसूत्रोमां अनेकस्थळे ... १ गोशालानी पासेथी छलेश्यानो विचार लइने पाछलथी बधा सिद्धांतनी साथे संगत करी देवानुं भने अचेलकना विषयने लेवानुं लख्यु ते पण विचारवा जेवू छे. केम के बीजाओना विचारो लईने बधा सिद्धांतोनी साथे संगत करवानुं आज सुधी कोई पण मतवाळाथी बनी शक्युं नथी अने तेम बनें पंण नहीं एम ममा मानधुं छे. . संग्राहक. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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