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________________ तथा सामर्थ्य नयी; परन्तु आ दरेक जीव पोतानी स्वभावनियतिने. वश थई, छ प्रकारमांनी कोई पण जातिमा रही सुख दुःख भोगवे छे. इत्यादि ' आ सिद्धांतोतुं सूत्रकृतांगमां (I. C.) आपेढुं वर्णन जो के थोडा शब्दोमां छे, छतां पण सरखा भावार्थवाळु छे; अलबत ते स्थळे आ सिद्धांतो मक्खलीपुत्र गोशालना छे एम स्पष्ट कहेवामां आव्यु नथी. जैनो प्रधानतया चार दर्शनोनो उल्लेख करे छे:-क्रियावाद, अक्रियावाद, अज्ञानवाद अने वैनयिकवाद. आमांथी अज्ञानिकोना मतोनुं मूळमा स्पष्ट कथन करेलु देखातुं नथी. आ सवळा दर्शनोना विषयमा टीकाकारे जे समजुती आपेली छे, अने जे में पृ. ८३ नी २ नंबरनी टीपमां नोंघेली छे, ते घणीज अस्पष्ट अने मेरसमजुती उत्पन्न करे तेवी छे. परन्तु ए अज्ञेयवादनो यथार्थ ख्याल आपणने बौद्धग्रन्थोथी आवी शके तेम छे. सामञफलसुत्तमा जणाव्या प्रमाणे ते मत सञ्जयनेलहिपुत्रनो हतो; अने त्यां नीचे प्रमाणे तेनुं वर्णन करेलुं छे:'महाराज ! जो मने तमे पूछशो के जीवनी कोई भावी अवस्था छे ! तो हुँ जबाब आपीश के जो हुँ भावी अवस्था अनुभवी शकुं, तो पछी हुं ते अवस्थान स्वरूप समजावी शकुं. जो मने पूछशो के शं ते अवस्था आ प्रकारनी छे ? तो (हुं कहीश के) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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