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________________ (४७) तेम 'चातुयामसंवरसंवतो' ए वाक्य मात्र टीकाकारेज नहीं परन्तु मूळ ग्रन्थकारे पण खोटी रीते समजेलं छे. कारणके-पालीशब्द 'चातुयाम ' ते प्राकृतशब्द ' चातुग्गाम' नी बराबर थाय छे. अने आ प्राकृतशब्दनो एक प्रसिद्ध जैनपारिभाषिक शब्द छे जे महावीरना ( पंचमहब्बय) पांच महाव्रतोथी भिन्न एवा पार्श्वनाथना चार व्रतोनो वाचक छे. आथी आ स्थले बौद्धोए जे सिद्धांत वास्तविकमां महावीरना पुरोगामी पार्श्वनाथने लागु पडे छे तेने, महावीर उपर आरोपित करवामां भूल करेली छे, एम हुं धाएं छु. आ उपरथी एम सूचित थाय छे के बौद्धोए आ शब्दने निगन्ठोना धर्मवर्णनमां लीधेलो होवाथी तेमणे ते पार्श्वनाथना अनुयायिओना मुखेथी सांभल्यो हशे. अने बीजी ए पण कल्पना थई शके के महावीरना संशोधितमतो जो बुद्धना समयमा सर्वसामान्यरीते स्वीकाराया होत तो पार्थनाथना अनुयायिओ पण ते वखते ते शब्दनो उपयोग नहीं करता होत. बौद्धोनी आ भूलद्वारा हुँ जैनोनी ए परंपराने सत्य स्थापित करी शकुंटूं के महावीरना समयमां पण पार्श्वनाथना शिष्यो विद्यमान हता. आ पद्धतिए तपास करवानी शरुआत करतां पहेला हूं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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