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________________ मांथी अवतरणो आपवानी आवश्यकताने हुँ निरर्थक मा छु. पालीग्रन्थोमांथी प्राचीननिगंठोना मंतव्यो संबंधी जे काई माहिती हुँ एकत्र करी शक्यो छु, लगभग ते बधी उपर आपी दीधी छे. जो के आपणे इच्छिए तेना करतां ते घणी अल्पप्रमाणमां छे, तो पण तेथी तेनी किंमत विलकुल ओछी गणाय तेम नथी. प्राचीननिगन्ठोना मंतव्यो अने आचारोना संबंधमां उल्लेखो आपणे एकत्र कर्यो छे ते सघलां एक अपवादने बाद करतां वर्तमान जैनमंतव्यो भने आचारो साथे मळतां आवे छे. अने तेमांना केटलाक तो जैनोना खास मौलिक विचारो छे. आ उपरथी आपणने एम संदेह करवानुं जराए कारण नथी जडतु के, आ बौद्धग्रन्थोमांनी नोंधो अने जैनसिद्धांतोनी रचना वच्चना अंतर्वर्ती कालमां जैनसिद्धांतोमां झाझो फेरफार थयो होय. में जाणी जोईनेज निगण्ठ नातपुत्तना मतविषयक एक प्रधान प्रकार- विवेचन कर आ स्थले मुलतबी राख्युं छे. कारण के ए फकरामां आपेली बाबत उपरथी आपणने एक नवीज पद्धतिए तपास करवानी जरूरत रहे छे. आ फकरो दीघनिकायना सामनफलसुत्तमा आपेलो छे. १ सुमङ्गलविलासिनी [ पालीटेक्स्ट सोसायटी ] पृ. ११९, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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