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________________ ( ४३ ) आ वर्णन उपरथी समजाय छे के निग्रंथ - - उपासकना उपो-सथना दिवसोवाळा नियमो साधुजीवनना नियमो जेवाज होवा जोईए. गृहस्थ अने साधुजीवनना नियमोनुं भिन्नत्व बीजा दिवसोमां रहेतुं हतुं. परन्तु आ वर्णन जैनोना पोसहत्रतना नियमो साथे पूरेपूरुं मळतं आवतुं नथी. प्रो. भांडारकर, तत्वार्थसारदीपिकाना आधारे पोसहत्रतनुं स्वरूप नीचे प्रमाणे आपे छे; अने आ वर्णन बीजा तेवा वर्णनो साथे बराबर संगत थाय छे. भांडारकर लखे छे के ८ पोसह एटले दरेक पक्षनी अष्टमी अने चतुर्दशीना पवित्र दिवसे उपवास करो अथवा एकाशन करवुं, अथवा एकज ग्रास खावो. ते दिवसोमां यतिनी माफक वैराग्य धारण करी स्नान, लेपन, आभरण, स्त्रीसंगमन, सुंगधी धूप-दीप इत्यादिनो त्याग करवो '. जो के वर्त्तमानजैनोनुं ए पोसहवत - पालन बौद्धो करतां घणुं सखत छे, ए वात खरी छे; तो पण ते निगन्ठ-नियमो के जेमनुं वर्णन उपर आपवामां आव्युं छे, तेना करतां घणुं शिथिल होय तेम जणाय छे. मारा जाणवा प्रमाणे जैनगृहस्थ, पोसहम कपडानो त्याग करतो नथी, पण बाकीना आभूषणो अने बीजा विलासोनो त्याग करे छे तेमज दीक्षा ग्रहण करती वखते जेम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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