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________________ (३६) छे त्यारे दुःखनो क्षय थाय छे. ज्यारे दुःखनो क्षय थाय छे त्यारे वेदनानो अंत आवे छे. ज्यारे वेदना मटशे त्यारे सर्व दुःखनो क्षय थशे. आ रीते ज्यारे पापनो पूरो ध्वंस थशे त्यारे मनुष्य वास्तविक मुक्ति मेळवशे." आ विचारोनुं जैनप्रतिविम्ब उत्तराध्ययनना २९ मा अध्यथनमा मळी शके छ:-" तपथी मनुष्य कर्मने छेदी शके छे २७.' योगना त्यागथी अयोगपणुं प्राप्त थाय छे; कर्म रोकवाथी ते नवीन कर्मने ग्रहण करी शकतो नथी अने पूर्व ग्रहण करेलां कर्मोनो क्षय करे छे. ३७." आ प्रकारनी प्रवृत्तिनी बे अन्तिम दशाओ ( सूत्र ७१ अने ७२ मां ) वर्णवामां आवेली छे. अने वळी अध्ययन ३२, गाथा ५, ७ मां आवती नीचेनी हकीकत वांचीए छीए:'जन्म अने मरण कारण कर्म छे अने जन्म अने मरण एज दुःख कहेवाय छे.' आ उपरांत बीजी पण उपरना अर्थने मळती ३४, ४७, ६०, ७३, ८६, अने ९९ मी गाथाओनो संक्षिप्त अर्थ नीचे प्रमाणे हे-'परन्तु जे मनुष्य इंद्रियोना विषयोथी अने मानसिक लागणीओथी [ आनो अर्थ बौद्धतत्वज्ञाननी वेदनाना अर्य साथे घणोज मळतो आवे छे ] उदासीन रहे छे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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