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________________ ( ३०) (द्वितीय भाग.) जैनसूत्रोना मारा भाषांतरना प्रथम भागने प्रकट थए दश वर्ष थयां. ते दरम्यान केटलाक उत्तमविद्वानोद्वारा जैनधर्म अने तेना इतिहास विषयक आपणा ज्ञानमा घणो अने महत्वनो वधारो थयो छे. हिंदुस्थानना विद्वानोए संस्कृत अने गुजरातीमां लखेली सारी टीकाओ साथे सूत्रग्रन्थोनी साधारण आवृतिओ बहार पाडी छे. प्रो. ल्यूमने अने प्रो. होनले आ सत्रग्रंथोमांना वे सूत्रोनी गुण-दोषना विवेचनवाली आवृत्तिओ पण प्रकट करी छे अने तेमांए प्रो. होर्नले तो पोतानी आवृत्ति साथे मूळर्नु काळजीपूर्वक करेलं भाषांतर अने पुरतां उदाहरणो पण आप्यां छे. प्रो. बेबरे पोते तैयार करेला वर्लिनना हस्तलेखोना विस्तृत . १ दस् , औपपातिक सूत्र,-Abhandlungen fur die kunde . des Morgenlondes नामनी ग्रन्थमाला, पुस्तक ८; दशवकालिक सूत्र अने नियुक्ति, जर्नल आफ धी ओरिएन्टल सोसायटी, पु. ४५. २ उवासगदसाओ ( बिब्लिओथिका इन्डिका ) भाग १ मूळ अने टीका, कलकत्ता १८९०, भाग २, इंग्रेजी भाषान्तर, १८८८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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