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________________ (२१) पूर्वे ३१६-२९ १ जणावेलो छे, तथा वेस्टरगार्ड (Westergaard) अने केर्न ( Kern ) वधारे संभवित रीते ते समय ई. स. पूर्वे ३२० जणावे छे. आ बन्ने वच्चे जे अल्प तफावत छे ते महत्वनो नथी. लगभग आ हिसाबे जैनसिद्धान्तनो रचनासमय ई. स. पूर्वे चोथी सदीना अन्तमां अगर तो त्रीजी शदीनी शरुआतमां आवे छे. साथे साथे ए पण लक्ष्यमा राखवानुं छे, के उपरोक्त संप्रदाय-परंपरानो भावार्थ ए छे के पाटलिपुत्रना संघे भद्रबाहुनी साहाय्य सिवायज अगिआर अंगो एकटां को हता. भद्रबाहुने दिगम्बरो अने श्वेताम्बरो बन्ने सरखी रीते पोताना आचार्य माने छे, तेम छतां श्वेताम्बरो पोताना स्थविरोनी यादिने भद्रबाहुना नामथी आगळ नहीं चलावतां, तेमना समकालीन स्थविर संभूतिविजयना नामथी आगळ लंबावे छे. ए उपरथी एम फलित थाय छे के पाटलिपुत्रना संघे एकत्र करेलां अंगो मात्र श्वेताम्बरोनाज सिद्धांतो मनाया हशे. पण आखी जैनसमाजना नहीं. आवी वस्तुस्थिति होवाथी, आपणे सिद्धांतरचनाना काळने जो युगप्रधान श्रीस्थूलभद्रना समयमां एटले ई. स. पूर्वे त्रीनी शताब्दिना प्रथमभागमां स्थिर करीए तो ते खोटुं नहीं गणाय. 9 Geschiedenis van het Buddhisme in Indien ii, p. 266 note. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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