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________________ (१५) प्राकृतभाषाने, पाली तथा हाल सेतुबंध विगेरेनी (पाछला समयनी) प्राकृत साथे जो आपणे सरखावीशं तो आपणने स्पष्ट जणाशे के जैनप्राकृत ए पाछलनी प्राकृत करतां पालीने वधारे मळती आवे छे. आ उपरथी आपणे एवा निर्णय उपर आवी शकीए छीए के कालगणनानी दृष्टिए पण जैनोना आगमो त्यार पछीना समयमां थएला प्राकृतग्रंथकारोना ग्रंथो करतां दक्षिणना बौद्धसूत्रो [ ना रचनासमय ] साथे वधारे समीपता धरावे छे. .... परन्तु आपणे जैन आगमोनी रचनाना समयनी मर्यादा, तेमां प्रयोजाएला छंदोनी मददथी, आधी पण वधारे निश्चित रीते आंकी शकीए तेम छीए. हुं आचारांग अने सूत्रकृतांगसूत्रना प्रथमस्कंधोने सिद्धांतना सहुथी प्राचीन भाग तरीके मार्नुछु. अने मारा आ अनुमानना प्रमाण तरीके हु आ बे ग्रन्थोनी (स्कन्धोनी) शली बतावीश. सूत्रकृतांगसूत्र, आलुं प्रथम अध्ययन, वैतालीयवृत्तमां रचाएल छे, आ वृत्त धम्मपद आदि दक्षिणना अन्य बौद्ध ग्रंथोमां जैनोना संस्कृतग्रंथोनी प्रतिओमां प्राकृतशब्दो जेवा लग्वेला घणा शब्दो मळी आवे छे. उपर प्रमाणे मानतां पण केटलीक जोडनीओ तो एवी मळी आवे छे के जेने संस्कृतीकरणनी दृष्टिए पण समजावी शकाय तेम नथी. उ. त. दारयने बदले मळतुं दारग एबुं रूप लईए. आ शब्दनुं संस्कृतप्रतिरूप 'दारक ' थाय छे. परन्तु · दारग ' एथतुं नथी. Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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