SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२) देवर्द्धिगणीए पण भले तेने पोतानी आवृत्तिमांस्वीकारी लीधा.होय. पण तेटला उपरथी आपणे कोई प्रकार- सबल अनुमान काढी शकीए नहीं हुं म्लेच्छ अथवा अनार्य जातिओनी' जे यादिओ ए सूत्रोमां मळी आवे छे ते उपर वधारे वजन मुकी शकतो नथी. तेमज साते निन्हवो के जेमांनो छेल्लो वीरनिर्वाण पछी ५८४ वर्षे थयो' हतो. तेना उल्लेख उपरथी पण कांई अनुमान काढी शकाय नहीं. आवा प्रकारनी विगतोना संबन्धमां जो एम मानवामां आवे के जे आचार्यो पोतानी शिष्यपरंपराने पेढी दरपेढीए लिखित या कथितरूपे सिद्धांतपाठ सोंपता गया हता, तेओए ते ( विगतो) ने सिद्धांतनी टीका टिप्पणीरूपे अगर तो मूल सुद्धांमां पण दाखल करी दीधी हती तो तेमां कोई अस्वाभाविकता जेवू नथी. परन्तु सिद्धान्तमा एक महत्ववाळी बाबत ए जणाय छे के तेमां कोई पण स्थळे ग्रीकलोकोना खगोळशास्त्रनी गन्ध सरखी १ अनार्यजातिओमांनो 'आरव' शब्द ते बेनरना धारवा प्रमाणे कदाच 'आरव' वाचक बने, परन्तु मारा मानवा प्रमाणे ते शब्द 'तामिलो' नो वाचक छे, कारण के तामिलोनी भाषाने द्रविडीयन लोको अरवमु कहे छे. . २ See Weber Indische Studien XVI, P. 237. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy