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________________ ( १५२) ब्रह्माजी उत्पन्न थया. ए त्रणे देवोए प्रथम कृष्णजीने पूज्या तेमनी आज्ञा मेळवीने आ सृष्टिनी रचना करी. इत्यादि सविस्तर ते पुराणथी जोई लेवु. ॥ ६ ॥ वेदनो पण कोइ भेद न पावे, क्या करे गडमथलाई मारग छोड उन्मारग जाके, केवल धूम मचाई | वा. ॥७॥ मतममताको छोडके देखो, कोई पुरुष अतिसाई पुछ पाछ कर भितर खोजो, पीछे आतम काज सधाई ।वा.॥८॥ गुरुकृपासे सृष्टिसंबंधका, किंचित् भेदको पाई; अमर कहे हम अमर भये है, अंतर भरम गमाई ॥वा.॥९॥ ॥ इति सष्टिसमुत्पत्तिसंबंधे भिन्नभिन्नविचारदर्शकं गीतं । ॥ सृष्टिनी उत्पत्तिना संबंधे-बीजी पण घणा प्रकारनी कल्पनाओ थयेली छे ते पण प्रसंगना वशयी थोडीक लखीने बतावीए छीए १ जुवो के-य० वा० सं० अ० १७ मं० ३० नी श्रुतितमिर्गर्भ प्रथमं दध्र आपो यत्रं देवाः समगच्छन्त विश्व अजस्य नाभावध्ये कमर्पितं यस्मिन् विश्वानि भुवनानि तस्थुः॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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