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________________ ( १४० ) बदकालमा लोहनी नदीओ वेहती. ज्ञानकांडकालमां ते प्रवाह केटलेक दरजे कमी थयो. अने ते ज्ञानकांडकालनी प्रवृत्ति जैनधर्म अने बौद्धधर्मनी प्रबल असर पछी थई. केमके - जैनोना तीर्थकर सर्वज्ञ होय छे अने तेमने केवलज्ञानरूपी सूर्यनो उदय यतानी साथै सर्व तत्त्वपदार्थोनो यथार्थ प्रकाश एकी वखते थाय छे. ते सत्यरूप पदार्थोंने तेमना गणधरो ( मुख्य शिष्यो ) सत्य सिद्धांतना स्वरूपमां पद्धतिसर रचना करी जनसमूहना आगळ मुके छे. तेनी साथेज श्रौतधर्म एटले यज्ञविधिरूप अंधकार दूनीयामांथी नष्ट थतो देखी - इंद्रियार्थसुखमां लेपट बनेला वैदिकधर्मवाळा एटले याज्ञिकधर्मवाळा पाछा आ दूनीयाने यज्ञधरूप अंधकारमां धक्केवाने माटे धमपछाड करी मुके छे पण सत्यना आगे जूठ सदा दबाईने ज रहे छे; पछी नवीन स्मृतिओ, पुराणोनी रचनाओ करीने कोई जगो उपर तो जैन अने बौद्धनी स्तुति करी तो कोई जगो उपर वेदवाह्य, नास्तिक विगेरे लखीवाळीने अजाण लोकोमां जूठी अफवा फैलावी मुकी, पण ते सत्य पदार्थो आज सुधी अज्ञानना पडलथी मुक्त पुरुषोने यथार्थपणे प्रकाश आप्या करे छे. अने तेवा महात्माओ दूनीयाने प्रकाश देखाडवाने तन अने धन विगेरे सर्वनो व्यय करी रह्या छे. वो सिद्धांतसार पृ. १०८ मां- बुद्ध "ते पोताना जन्मनुं सार्थक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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