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________________ ( १३८) प्रतिमोथी आपणे केवी रीते निर्णय करी शंकवाना ? आ जगत्नी उत्पत्तिना संबंधे वेदोमां केवा केवा प्रकारनी श्रुतिओनो संग्रह यएलो छे तेनो पण परिचय आपवानुं धारु छु. आ ठेकाणे विचार करवानो एटलोज के-जे वेदो ईश्वरकृत अनादि तरीके मनाएला छे तेना हाल शुं एक चीथरीया देव जेवा थएला जोवामां आवे खरा के ? सज्जनो ! स्वार्थी लोकोना कपन उपर भरोसो राखी केवल अंधारा कुवामां डुबी न मरतां कोई सत्पुरुषना वचनो तरफ लक्ष्य करी सत्याऽसत्यनो विचार करीने जूवो, अने सत्यमार्गे चढो । के जेथी आ मनुष्य जन्मन साफल्यपणुं थाय आटलुंज लखीने आ ठेकाणेथी विर{ छ । ॥ श्री हेमचंद्राचार्यनी बत्रीशीना-दशमा काव्यनु स्वरूप किंचित् विशेष का. हवे पृ. १२५ मांना बारमा काव्य किंचित् विशेष कहीए छीए. सिप्येत वाऽन्यैः सदृशीक्रियेत वा तवांऽघ्रिपीठे लुठनं सुरेशितुः । इंदं यथाऽवस्थितवस्तुदेशनं परैः कथंकारमपाकरिष्यते ॥ १२॥ . आ काव्यनो भावार्थ ए छे के—हे निनेश्वर देव ! बीजा मतना पंडितो, ऋषिओ, तमारा माटे जुळु साचुलखी सिद्ध बनवानो प्रयत्न गमे तेटलो करे पण आ यथार्थपणे प्रगट थएवं तमारुं पदा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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