SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३६ ) मेळवीने लाखो पशुओना उपर कतल चलावेली जग जाहेर थई चुकी छे। अने वेदोमां तेवा हिंसक पाठो पण डगले डगले भोवामां आवी रह्या छे. तेमां केटलीक श्रुतिओ तो एवा प्रकारनी के श्रवण गोचर थतानी साथै सज्जन पुरुषो लज्जित ज थई जाय. विचार करी जोतां एम मालम पडे छे के आ वेदो ईश्वरना करेला तो नथी ज तेम कोई धर्मात्माना रचेला होय तेवा प्रकारनं पण अनुमान करवामां आपणुं हृदय प्रेरातुं नथी. पण मात्र एवाज अनुमान तरफ दोराय छे के - आ वेदनी हिंसक श्रुतिओ कोई विद्याम्यासना धावाळा मदिरा मांसना भक्षको रचना करता गया होय, तेना गानमां मस्त बनता गया होय, साथे लोकोने पण सुनावता गया होय. अने पोते महर्षिना नामोयी प्रसिद्ध थता गया होय, तेमज स्वार्थी लोको पण तेनो अमल करता गया होय. तेवा अवसरमा यथार्थतत्त्वज्ञानिना अभावे अमारो वेदधर्म, अमारो वेदधर्म, एम अयोग्य महत्व आपता गया होय. तेनुं बंधारण जोतां आवाज अनुमानो उपर आवीने बेसबुं पडे छे. केमके तेमां श्रुतिओ पण तेवाज प्रकारनी छे. जूवो के - हे इंद्र ! अमारी गायनी रक्षा कर, चोराईने गई छे तेने पाळी लावीने आप. हे इंद्र ! अमारा बकरानी रक्षा कर, आ श्रुति उपर एक दक्षणी पंडिते एवी तर्क करी हती के आजकाल कोई एवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy