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________________ (१३४) गाय आने बहु पवित्र गणाय छे तेने प्राचीन समयमां यज्ञ माटे तथा मधुपर्क माटे मारवानो रीवाज हतो." । ___ आ बे फकराथी विचार करवानो ए छे के-जे लोको आर्य तरीके प्रसिद्धिने पामेला-अने अमारा वेदोने न माने ते-नास्तिक -नास्तिक कही जगत्ना अज्ञान वर्गमां जूठी अफवा फेलाववावाळा अने जे महर्षिओना नामथी पूज्य तरीके मनाएला तेओ पण-गाय, बलद, जेवा उत्तम प्राणीओने मारीने तेनुं मांस खावावाळा अने तेवा हिंसक शास्त्रने वळगीने अघोर कर्त्तव्य करवावाळा, तेमने निर्दय केहवा के दयावान् ? दुर्बुद्धिवाळा केहवा के सुबुद्धिवाळा ? अने तेवां हिंसक शास्त्रोने प्रमाणभूत मानवां के अप्राणभूत ? तेनो विचार वाचकवर्गज करी लेशे. ___वळी ई. सं. १८६६ मां करसनदास मूलजीए बहार पाडेला वेदधर्म नामना पुस्तकना पृ. २ मां-, __ "वेदथी लोकोने वाकेफ करवा माटे तेओ ना पाडे छे. केम के-पुराणादिक ग्रंथोमां कां छे के-कलियुगमां ब्राह्मण शिवाय कोईए वेद वांचवा अथवा समजवा नहिं. आलुंज नहीं पण वेदनां वचन पण लोकोने काने पडवा देवां नहीं. आवो अटकाव करवानुं कारण तपासी जोतां मालम पडशे के-पुराण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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