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________________ (१३१) मणिलालभाई पोते द्विवेदी छे. तेमने घणा दुःखनी साथै आ बे फकरा लखवा पड्या हशे बाकी चारे वेदोमां डगले डगले हिंसक श्रुतिओ भरेली छे. वधारे जोवानी इच्छा होय तेमणे अमारा गुरुवर्य श्रीमद्विजयानंदसूरीश्वरजी ( प्रसिद्धनाम आत्मारामजी ) महाराजाना रचेला अज्ञानतिमिरभास्कर अने तत्त्वनिर्णयप्रासाद आ वे ग्रंथो जोई लेवा. वेदोमां केटलं गहन ज्ञान ( ? ) छे तेनी खात्री थशे. . । एज दशमा काव्य, बीजु पद-असर्वविन्मूलतया प्रकृतेःआ पदनो अर्थ एटलोज के–वेद, स्मृति, पुराणादिक शास्त्रो सर्वज्ञ पुरुष विनाज प्रवृत्तमान थएलां छे. ते पण तेमनाज सिद्धांतर्थी सिद्ध थाय छे. जुवो-शिवपुराण धर्मसंहिता अध्याय ४७ मां पार्वतीजीने महादेवनी कहे छे के ब्रह्मा विष्णुरहं देवि ! बद्धाः स्मः कर्मणा सदा। कामक्रोधादिभि दो पै-स्तस्मात्सर्वे ह्यऽनीश्वराः ॥७॥ भावार्थ हे देवि ? ( हे पार्वति ? ) ब्रह्मा, विष्णु अने हुँ एम त्रणे देवो कर्मथी अने काम विकारना दोषथी, तेमज-क्रोध, मान, माया, लोभादिक दोषोथी सदा बंधाएलान छीए, तेथी अमो सर्वे ईश्वर स्वरूपे नयी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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