SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२४) अने तकरार करवा जेवोज धंधो लई बेसे छे पण अधिकपणुं कांई करी शकता नथी. तेवा पण्डितो उपर दया उत्पन्न थवाथी ग्रन्थकारे आ काव्यमा पोतानी दिलगीरीज प्रगटपणे करी बतावी छे ॥९॥ हिंसाद्यसत्कर्मपथोपदेशादसर्वविन्मूलतया प्रवृत्तेः । नृशंसदुर्बुद्धिपरिग्रहाच्च ब्रूमस्त्वदन्यागममप्रमाणम् ॥ १० ॥ - भावार्थ हे भगवन् ! हे जिनेन्द्र ! तारा कथन करेला आगम बिना बीजा वेदादि आगमो सत्पुरुषोने सर्वप्रकारथी मान्य थई शके तेम नथी. कारण के ते वेदादिआगमोमां हिंसादि असत्कर्मोना मार्गनो उपदेश होवाथी अने धरमूलथी असर्वज्ञपुरुषोथी प्रवृत्त थएला होवाथी अने निर्दय तथा स्वार्थसाधक दुष्टबुद्धिवाळा पुरुषोथी ग्रहण थएलां होवाथी अमो तेने अप्रमाण कहीए छीए॥ १० ॥ हितोपदेशात् सकलज्ञक्लप्तेर्मुमुक्षुसत्साधुपरिग्रहाच्च । पूर्वाऽपरार्थेऽप्यविरोधसिद्धेस्त्वदागमा एव सतां प्रमाणम् ॥११॥ ... भावार्थ-हे जिनेन्द्र ! तारां कथन करेलां आगमोमां सर्व मीवोना हितनो उपदेश होवाथी, तथा सर्वज्ञपुरुषोथी बंधारण थएला - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy