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________________ (१०५) जोई तेमने हुं मोहक कहेवा जतो हतो, पण तरतज याद आव्यु के आ मूर्तिनुं ध्यान तो मोहने दूर करवा माटे होय छे. चित्तने एकाग्र करवानी शक्ति आ मूर्तिओमां जरुर छे. आ मन्दिरोनी पूजा त्यांना ब्राह्मणोज करे छे. जैनमन्दिरोमां ब्राह्मणोने हाथे पूजा ए एक रीते अजुगतुं लाग्यु. छतां " हस्तिना ताडयमानोऽपि न गच्छेजिनमंदिरम्" कहेनारा ब्राह्मणो भले लोभथी-पण आटला उदार थया एथी मनमा समाधान थयु. आजे पावापुरी एक नानकडं गामडु छे. अहिंसा धर्मनो प्रचार करनार महावीर ज्यारे अहीं वसता हता त्यारे तेनुं स्वरूप केवु हशे? हिंदुस्तानमां केटलीए महान् महान् नगरीओनां गामडां थई गयां छे, अने केटलीक नगरीओनां तो नामनिशान पण रह्यां नथी; एटले आजनां गामडां उपरथी प्राचीन पावापुरीनी कल्पना थईज न शके. प्राचीन काळनो अहीं कशो अवशेष देखातो नथी. फक्त ते महावीरना महानिर्वाणर्नु स्मरण आ स्थानने वळगेलुं छे, अने तेथीन श्रद्धानी दृष्टि बे अढी हजार वर्ष जेटली पाछळ जई शके छे, अने महावीरनी क्षीण पण तेजस्वी काया शान्तचित्ते शिष्योने उपदेश करती होय एवी दृष्टि आगळ उभी रहे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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