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________________ ( १०१ ) लोकमान्य पण्डित बालगङ्गाधर तिलकना उद्गारो, " जैनधर्म अनादि है × × × ब्राह्मणधर्म पर जैनधर्मकी छाप. " श्रीमान् महाराज गायकवाडने पहले दिन कोन्फरन्समें जिस प्रकार कहा था उसी प्रकार ' अहिंसा परमो धर्मः ' इस उदार सिद्धान्त ब्राह्मणधर्म पर चिरस्मरणीय छाप (महोर) मारी है "7 यज्ञयागादिको में पशुओंका वध होकर जो 'यज्ञार्थ पशुहिंसा' आजकल नहीं होती है जैनधर्मने यही एक बडी भारी छाप ब्राह्मणधर्मपर मारी है. पूर्वकालमें यज्ञके लिए असंख्य पशुहिंसा होती थी इसके प्रमाण मेघदूतकाव्य तथा और भी अनेक ग्रन्थोसे मिलते है. रतिवेद ( रंतिदेव ) नामक राजाने यज्ञ किया था उसमें इतना प्रचुर पशुवध हुआ था कि, नदीका जल खूनसे रक्तवर्ण हो गया था. उसी समयसे उस नदीका नाम ' चर्मवती' प्रसिद्ध है. पशुवध से स्वर्ग मिलता है इस विषय में उक्त कथा साक्षी है परन्तु इस घोर हिंसाका ब्राह्मणधर्म से बिदाई ले जानेका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
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