SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - (८३) दोनों मजहबोंके सिद्धान्त विशेष घनिष्ठ समीप संबन्ध रखते हैं, जैसा कि पूर्वमें मैं कह चुका हूँ और जैसा कि-सत्कार्यवाद, सत्कारणवाद, परलोकास्तित्व, आत्माका निर्विकारत्व, मोक्षका होना, और उस्का नित्यत्व, जन्मान्तरके पुण्यपापसे जन्मान्तरमें फलभोग, व्रतोपवासादिव्यवस्था, प्रायश्चितव्यवस्था, महाजनपूजन, शब्दप्रामाण्य इत्यादि समान हैं, बस तो इसी हेतु मुझे यहाँ यह कहते हुए मेरा शरीर पुलकित होता है कि आज का यह हमारा जैनोंके सङ्ग एकस्थानमें उपस्थित होकर संभाषण वह है कि जो चिरकालके बिछुड़े भाई भाईका होता है। सज्जनों ! यह भी याद रखना जहाँ भाई भाईका रिस्ता है वहाँ कभी कभी लड़ाईकी भी लीला लग जाती है, परन्तु याद रहे उस्का कारण केवल अज्ञानही होता है । __इस देशमें आज कल अनेक अल्पज्ञ जन बोद्धमत और जैनमतको एक जानते हैं, और यह महा भ्रम है। जैन और बौद्धोंके सिद्धान्तको एक जानना ऐमी भूल है कि-जैसे वैदिक सिद्धान्तको मान कर यह कहना कि वेदोंमें वर्णाश्रमव्यवस्था नहीं है, अथवा जातिव्यवस्था नहीं है, अथवा यह कहना कि द्विजोंने शुद्रोको झूठ मूठ छोटा बनाकर उन्हें बड़े क्लेश दिये, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy