SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जेवा गणता नहोता एम पण घणा अंशे संभवनीय छे. आ तरफ तो चारे आश्रमनो अधिकार फक्त ब्राह्मणोनेन छे एवो मत दृढ ययो छे. अने तेने मनुस्मृतिनो अध्याय ६, श्लो. ९७ नो आधार आपे छे. ते उपरनी हकीकत जोतां बधा टीकाकारोनो एम मत हतो ते देखातो नथी केवल आ तरफ मात्र चार आश्रम ब्राह्मणोए ग्रहण करवा, त्रण क्षत्रिओए, ने वे वैश्योए, अने शुद्रोए फक्त एकज आश्रम ग्रहण करवो एवी समन थई छे. . ए सर्व हकीकत उपरथी एम सिद्ध थाय छे के, अति प्राचीन वखते पण ब्राह्मणेतरयतिधर्म ब्राह्मणयतिवर्गो करतां बिलकुल जुदो गणाएलो होवो जोईए. ए खरुं नथी, कारण क्षत्रिओने चारे आश्रमनो अधिकार हतो. रघुराजादि राजाओ पुत्रने राज्यकारभार सोपीने जंगलमां जईने संन्यास लईने रह्या हता एवा वर्णनो छे तेनी उपपत्ति शं? जनकादि तपस्विओ हता ए सिवाय अनेक क्षत्रिय तपस्विओना दृष्टांत आपी शकाशे.. - ( वारु, त्यारे ब्राह्मण अने ब्राह्मणेतर एवा मार्गो करतां द्विन ( ब्राह्मण, क्षत्रिय अने वैश्य ) अने द्विजेतर एवा कदाच थई शकशे) ब्राह्मणेतरोना मोक्षना साधनभूत जे चतुर्थाश्रम एमां प्रवेश थतो नहोतो. एटला माटेज बौद्ध अने जैन विगेरे ब्राह्मणोथी Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy