SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४१ ) तेमना प्राचीन परंपरागत यक्ष, भूत, पिशाच देवताओ करतां काईपण विशेष पूज्यतम भाव होवो जोईए एम ज्यारे भास थवा लाग्यो, त्यारे उपरनो प्रकार ( प्रतिमापूजा विगेरे ) गृहस्थजनोना तरफयी हळवे हळवे प्रचारमां आवेलो होवो जोईए. प्रतिमापूजा चैत्यवंदन विगेरे विशेष प्रकारो उत्पन्न थवानुं कारण ते वखते ८४ लक्ष योनिओना फेरीमांथी पार उतरवानो भक्तिमार्ग एज एक रस्तो छे एवो भरतखंडमां ते समये प्रचलित थलो मत होय. त्यारे जैनोए तीर्थंकरादिकोनी पूजा विगेरे विधिओ बौद्ध पाथी लीधी अने बौद्धोनी ते विधिओ मात्र स्वयंभ हती एवं मानवा करतां ते वखते भरतखंडमां जे सामान्य धार्मिक उत्क्रांति चालेली हती ते मूळ कारणथीज' बन्नेए पोतपोतानी विधिओ लीवी एम मानवुं ए वधारे सयुक्तिक लागे छे. बन्ने aaj एक साम्य 'अहिंसा परमो धर्मः' ए पण छे ते विषे आगळ एकाद वखत विचार करीशुं. उपरना सिद्धांतोनुं समर्थन करवा माटे प्रोफेसर लेसने चो एक प्रमाण आप्युं छे, ते ए छे के जैन अने बौद्ध ए बन्ने सृष्टिनी उत्पत्तिना कानी कल्पनातीत अपरिमेय संख्याथी गणना करे छे. जैन शात्रानां सृष्टि, युगो विगेरे विषे जे तेओनो हिसाब छे तेमां Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.005250
Book TitleJainetar Drushtie Jain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherDahyabhai Dalpatbhai
Publication Year1923
Total Pages408
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy