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________________ જૈન શ્રમણ ૬૦૯ हाथ से कई प्रतिष्ठाएँ एवं अंजनशलाकाएँ, दीक्षाएँ, उद्घाटन 2700 संलग्न आयंबिल किये। आपने मात्र 35 वर्ष की वय संपन्न हुए है। आपके लघुबंधु भी आचार्य है अतः आप में वर्धमान तप की सौ ओली पूर्ण कर जैन जगत के बंधुयुगल के नाम से भी जाने जाते हैं। इतिहास में अमर हो गए। आज तक इतनी छोटी वय में वंदन हो शासनप्रभावक मालवमणि, बंधयगल वाणी के शायद ही सौ ओली किसीने पूर्ण की होगी। इतना ही बस जादुगर गुरुदेव को। नहीं ऐसा समझकर आपने फिर से पाया डाला एवं अभी आपकी 80 ओली हो गई है। अभी आपको निरंतर 3000 सौजन्य : भक्तामर महातीर्थ अभ्युदयधाम पो. धार (म.प्र.) आयंबिल हो गए है ऐगे भी निरंतर चालू है। आयंबिल ही वर्धमान तपोनिधि, उग्र तपस्वी, बंधुयुगल आचार्यदेव आपका जीवन बन चूका है। आपने सभी योगोद्वहन भी श्री चंद्ररत्नसागरसूरीश्वरजी म.सा. आयंबिल से ही किये। आयंबिल के अलावा आपने दो वर्षीतप, सिद्धितप, चत्तारी अट्ट, दस दोय एवं वीसस्थानक आचार्य श्री चंद्रत्नसागरसूरीश्वरजी म.सा. के नाम से तप भी किया है। बीसस्थानक तप भी आपने एकांतर उपवास विख्यात आचार्य श्री का जन्म मालवदेश के औद्योगिक नगर करके संपूर्ण एक-साथ निरंतर पूर्ण किया। अंतिम ओली इन्दौर जिले के गौतमपुरा गांव में ओसवंशी, मंडोवरा गौत्रीय सलग्र बीस उपवास विहार में करके पूर्ण की। श्रेष्ठीवर्य श्री मनसुखलालजी के सुपुत्र श्री पंचमलालजी एवं मातुश्री ताराबाई की कोख से सन् 1964 में हुआ था। आपका आप उग्र विहारी भी हैं। आपके विहार की गति एक नाम चंद्रप्रकाश था। घण्टे में सात कि.मी. होती है। आप तीस पैतीस कि.मी. तो सहज में चल लेते हैं। साथ में तप तो होता ही है। साथ आप धार्मिक परिवार में जन्मे थे अतः बाल्यकाल से ही पिताजी महाराज साहब एवं ज्येष्ठ भ्राता की वैयावच्च भी आपमें धार्मिक संस्कार विरासत में उतरे थे। आपके परिवार एवं मालवभूषण पूज्य आचार्य श्री नवरत्नसागरसूरीश्वरजी से कई महानुभाव पहले से ही दीक्षित थे। अतः जब आपके म.सा. की वैयावच्च का भी बहुत लाभ प्राप्त हुआ। माता-पिता ने संयम ग्रहण करने का निश्चय किया तब आपने भी मात्र तेरह वर्ष की उम्र में दीक्षा लेने की घोषणा कर आपको उज्जैन शहर में सन् 2003 में गणि पदवी से सभी को चौंका दिया था। अलंकृत किया गया। आपको तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में ज्येष्ठ भाता के साथ सन् 2005 में पंन्यास पदवी एवं श्री शैशव के श्रृंगार अभी उतरे थे कि आपने संयम के भक्तामर महातीर्थ अभ्युदयधाम धार में सन् 2008 में आचार्य स्वांग सज लिये एवं मुनि श्री चंद्रत्नसागरजी म. नाम धारण पदवी से विभूषित किया गया। कर अपने गुरुदेव के साथ विहार करने लगे। आपने वाल्यकाल में खूब ही अध्ययन किया। बचपन में ही आपने आप सफल प्रेरणादाता हैं। आपकी प्रेरणा से एवं प्रकरण, भाष्य, कर्मग्रन्थ एवं कम्मपयड़ी, पंचसूत्र, पंचसंग्रह ज्येष्ठ भ्राता आचार्य श्री जितरत्नसागर सूरीश्वरजी म.सा. के जैसे ग्रन्थों में प्रवीमता हासिल की। पूज्य गच्छाधिपति स्व. मार्गदर्शन से अद्भुत कार्य एवं शासनप्रभावनाएँ संपन्न हो श्री देवेन्द्रसागरसूरीश्वरजी म.सा. ने आपके बाल्यकाल के रही हैं। आप दोनों बंधुयुगल के नाम से विख्यात हैं। आपकी ज्ञान एवं प्रतिभा को पहचान कर कहा था तू तो उपाध्याय प्रेरणा से करोड़ो रूपयों का दान मालवा-मेवाड़ के जिनालयों है। जानते हो ना कि उपाध्यायजी का कार्य है पढ़ना और ' __ में, उपाश्रयों में एवं गौशालाओं में प्राप्त होता है। पढ़ाना। आप सफल संपादक भी हैं। आपके ज्येष्ठ प्राता आपको बाल्यकाल से ही आयंबिल के तप पर गहरी आचार्य श्री जितरत्नसागर सूरीश्वरजी म.सा. द्वारा लिखित आ रुचि रही है। अतः आपने गुरुदेव की प्रेरणा से मात्र चौदह अनुवादित 217 पुस्तकों का आपने संपादन किया है। आपके वर्ष की वय में वर्धमान तप का पाया डालकर ओली का द्वारा साज-सज्जा से प्रकाशित होनेवाली पुस्तकें सोलह कला श्रीगणेश किया एवं निरंतर आयंबिल तप करते रहे। आपने खिल उठती हैं। प्रकाशन को सफलता मिलने का श्रेय लगातार 500 आयंबिल किये, 1000 आयंबिल भी किये एवं आपका भा जाता है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005142
Book TitleVishwa Ajayabi Jain Shraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year2010
Total Pages720
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size35 MB
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