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________________ [ कुत्रिकापण ७ जुओ उज्जयिनी ८ ते ण काले णं से णं समये णं पासावनिचज्जा थेरा भगवंतो कुत्तियावणभूआ, वहुस्सुया, बहुपरिवारा पंचर्हि अणगारसएहिं सद्धि संपरिबुढा...भपू, शतक २, उद्दे. ५. जुओ एमांना अघोरेखित शब्द उपरनी अभयदेवसूरिनी वृत्ति-xx 'कुत्तिआवणभूपत्ति कुत्रिक स्वर्ग-मर्त्य- पाताललक्षणं भूमित्रयं, तस्संभवं वस्तु अघि कुत्रिकम् , सत्संपादक आपणो हः कुत्रिकापण:-तद्भूताः । समीहितार्थसंपादनलब्धियुक्तत्वेन सकलगुणोपेतत्वेन वा तदुपमा । कुमारपाल गुजरातनो प्रसिद्ध चौलुक्यवंशीय राजा (सं. ११९९-१२२९ ई. स. ११४३-११७३ ). जैनधर्म प्रत्येनुं एनुं वलण जाणीतुं छे, कुमारपालनां बहेन अने बनेवी एकवार धूत रमतां हतां तेमां बनेवीए 'मूंडियाने मार' एम कहोने जैन साधुनी मश्करी करी हती एमाथी घोर वेरनां बीज ववायां हता.' १ श्रापर, पृ. १३५. कुम्भकारकट चंपानगरीना (केटलाकना मत मुजब, श्रावस्तीना) स्कन्दक राजाए पोखानी बहेन पुरंदरयशा कुंभकारकटमा राजा दंडकी साथे परणावी हती. केटलाक समय पछी स्कन्दके दीक्षा लीधी अने विहार करता ते कुंभकारकट नई पहोंन्यो, ज्यां दंडकीना आदेशथी एनो वध करवामां आव्यो. स्कन्दक मरीने अग्निकुमार देव थयो अने तेणे आखं ये नगर बाळीने भस्म करी नाख्यु. आम कुंभकारकट नगरने स्थाने अरण्य बन्यु अने दंडकना नाम उपरथी दंडकारण्य तरीके ओळखायुं.' दक्षिण गुजरातमा डांगथी शरू थता अने गोदावरी नदीनी आसपास मुधी विस्तरेला अरण्यमे दंडकारण्य गणवामां आवे छे. वळी कुंभकारकटने अंते आवतो 'कट' पदान्त मोधपात्र छे. जो के जैन संस्कृतमा ए प्रयोजाय छे अने प्राकृसमां एनुं कई एषु रूप अपाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005124
Book TitleJain Sahitya ma Gujarat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhogilal J Sandesara
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1952
Total Pages316
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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