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________________ १८४ ] [ समयसुन्दर तेमणे रतंभतीर्थमां सं. १६९१ = १६३५ मां 'दशवैकालिक सूत्र उपर ' दीपिका' नामे टीका रची हती.' आ उपरांत ' कल्पसूत्र उपर पण ' कल्पलता' नामे एमनी टोका जाणीती छे. समयसुन्दर संस्कृतना एक उत्तम विद्वान हता, अने तेमणे अनेक ग्रन्थो रचेला छे. जैन गुर्जर साहित्यना पण तेओ एक सुप्रसिद्ध कवि छे. तेमनी साहित्यप्रवृत्ति सं. १६४२ = ई. स. १५८५ ( 'भावशतक ' रचायुं ) थी मांडी सं. १६९८=ई स. १६४२ ( ' जीवविचार,' 'नवतत्त्व ' अने ' दंडक ' उपरनी टीकाओ) सुधीना अर्थी शताब्दी करतां ये लांबा समयपट उपर विस्तरेला छे. १ दवेस, पृ. ११७ ( प्रशस्ति ) २ समयसुन्दरना जीवन अने तेमना ग्रन्थो माटे जुओ जैसाइ, पृ. ५७६ तथा ५८८-८९. तेमनां गुजराती काव्यो माटे जुओ पांचमी गुजराती साहित्य परिषदमां स्व. श्री. मोहनलाल द. देसाईनो निबंध 'कविवर समयसुन्दर . समिताचार्य समिताचार्य अथवा आर्य समित वज्रस्वामीना मामा हता. जैन साधुओनी ब्रह्मद्वीपक शाखा तेमना कर्तृत्वथी केवी रीते प्रवर्तमान थई ए विशे नीचेनो वृत्तान्त मळे छे: आभीरदेशमां कृष्णा अने वेणा नदीओना संगमस्थाने ब्रह्मद्वीपमा पांचसो तापसो रहेता हता. एमांनो एक तापस पोताना पग उपर अमुक प्रकारनो लेप करीने पाणी उपर फरतो हतो, आ चमत्कारथी लोको आश्चर्य पामता हता अने श्रावकोनी हेलना थती हती, वज्रस्वामीना मामा आर्य समित एक वार विहार करता त्यां आव्या. श्रावकोए तेमने बधी वात करी. ' आ तापस कोई प्रयोगथी श्रावकोने छेतरतो हशे ' एवं अनुमान करीने आर्य समिते तेमने कयुं के 'तापसने तमारे घेर आमंत्रणथी बोलावीने चरण प्रक्षालन-ना मिषथी एना पग बराबर धोई नाखो. ' पछी एक श्रावके तापस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005124
Book TitleJain Sahitya ma Gujarat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhogilal J Sandesara
PublisherGujarat Vidyasabha
Publication Year1952
Total Pages316
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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