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________________ १० चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ वास्ते यहां आया हूं के आप राधनपुर नगरमें पधारो, क्योंके ? रत्नविजयजी आपसें तीन थुइ बाबत चरचा करणेंकों कहते है, यह बात सुनकर मुनि श्रीआत्मारामजी महाराजनें मांडल गामसें राघनपुर नगरकों विहार करा सो जब श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथजीके तीर्थमें आये, तहां राधनपुर नगरसें बहुत श्रावकजन आकर महाराज साहेबकों कहने लगे के रत्नविजयजी तो राधनपुर नगरसें थराद गामकी तरफ विहार कर गए है । यह बात सुनके श्रावक गोडीदासजीने राधनपुरके नगरशेठ सिरचंदजीके योग्य पत्र लिखके भेजा के तुमने रत्नविजयजीकों मुनि आत्मारामजी महाराजके आवणे तक राखणा, क्योंके रत्नविजयजीके मास कल्पसें उपरांत रहनेका नियम नही है कितनेक गामोमें रत्नविजयजी मास कल्पसें अधिकभी रहे हैं यह बात प्रसिद्ध है ऐसा पत्र वांचके शेठ सिरचंदजीने राधनपुर नगरसें दश कोश दूर तेरवाडा गाममें जहां रत्नविजयजी विहार करके रहे थे, वहां कासीदके मारफत एक पत्र लिखके भेजा; तहांसे रत्नविजयजीने उस पत्रका उत्तर प्रत्युत्तर असमंजस रीतीसें राधनपुरनगरमें नही आवनेकी सूचना करनेवाला लिखके भेज दीया। (५) इस लिखनेका प्रयोजन यह है के जब रत्नविजयजीने श्रीअहमदावादमें सभा नही करी तब विद्याशालाके बैठनेवाले मगनलालजी तथा छोटालालजी आदिक अन्यभी कितनेक श्रावकोने प्रार्थना करी थी अरु अब श्रीराधनपुर नगरके शेठ सिरचंदजी अरु गोडीदासादि सर्व संघ मिलके मुनि श्रीआत्मारामजी महाराजकों प्रार्थना करी के, रत्नविजयजी तीन थुइ प्ररूपते हैं, अरु प्रतिक्रमणकी आदिकी चैत्यवंदनमें चार थुइ कहनेकी रीत प्राचीन कालसें सर्व श्रीसंघमें चली आती है। तो आप सर्व देशोंके चतुर्विध श्रीसंघके पर कृपा करके पडिक्कमणेकी आदिमें चार थुइयों चैत्यवंदनमें जो कहते हैं सो पूर्वाचार्योके बनाये हूए कौंन कौनसे शास्त्रके अनुसारसे कहते हैं, ऐसे बहोत शास्त्रोंकी साक्षि पूर्वक चार थुइयोंका निर्णय करनेवाला एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004920
Book TitleChaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherNareshbhai Navsariwala Mumbai
Publication Year2007
Total Pages386
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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